Sunday 23 September 2018

मुमकिन

उमर ढलती है
शरीर साथ नहीं देता
चाहत तो कायम रहती है

याद करो बचपन ओर यौवन
जब शरीर तंदरुस्त था
दिमाग शरारतो में मशरूफ था
कल जब आयेगा कर लेंगे मेहनत
आज तो मनमानी कर लें ज़रा

कल कल करते बुडापा आ गया
बहुत कुछ करना चाहते थे
सो धरा ही रह गया

जो है अपने पास उसी में तसल्ली करो
बुढापे को ही जननत में बदल दो
जब चाहत है मन में ओर हौसला है दिल में
सब कुछ मुमकिन है कर के तो देखो।

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